शक्ति इतनी कि जीवन में चार चांद लगा दे यह प्राणायाम

शक्ति इतनी कि जीवन में चार चांद लगा दे यह प्राणायाम

बात तो पीनियल ग्रंथि, आज्ञा चक्र और अतीन्द्रिय शक्ति के विकास में नाड़ी शोधन प्राणायाम की भूमिका की होगी। पर कुछ दृष्टांतों से समझिए कि आज्ञा चक्र जागृत हो जाए या यूं कहिए कि मामूली रूप से उदीप्त भी हो जाए तो अजब-गजब परिणाम मिल सकते हैं। थिओडोर "टेड" जुड सीरियोस अमेरिका में एक साधारण व्यक्ति था। पर उसकी अतीन्द्रिय शक्तियां असाधारण थीं। सन् 2006 में परलोक सिधारने से पहले कोई चार दशकों तक अपनी अतीन्द्रिय शक्तियों की बदौलत ऐसे-ऐसे काम किए कि अमेरिका और यूरोप के वैज्ञानिकों के लिए चुनौती बन गया था।

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मजेदार यह कि टेड सेरियोस न तो वैज्ञानिक था औऱ न ही आध्यात्मिक। सामान्य व्यक्ति था। उसे न तो पीनियल ग्रंथि का ज्ञान था न ही आज्ञा चक्र का। अतीन्द्रिय शक्तियों यानी साइकिक पावर्स के बारे में पढ़ा भर था। पर उसकी अतीन्द्रिय शक्तियां कमाल की थीं। वह हजारो मील दूर की घटनाओं को न केवल देख-सुन सकता था, बल्कि उसकी आंखें कैमरे की तरह उस घटना को कैद करने में सक्षम थीं। आंख की उन तस्वीरों को कैमरे में ट्रांसफर करके उसका प्रिंट लिया जा सकता था। वह कैमरे की लेंस को देखते हुए जिस किसी वस्तु का ध्यान करता था, उसका प्रतिबिंब आंखों में बन जाता था। यह न तो सम्मोहन का कमाल होता था और न ही फोटोग्राफी की कोई ट्रिक।

योगी इस तरह की घटनाओं को पूर्व जन्मों के संचित संस्कार का नतीजा बताते हैं। अनजाने में किसी क्रिया से आज्ञा चक्र का जागरण होने से अवचेतन मन की बातें चेतना के स्तर पर उभर आती हैं। पर सामान्य स्थितियों में यौगिक अभ्यासों से ही ऐसी शक्ति हासिल की जा सकती है। मन पर हुए अध्ययनों से साबित हुआ है कि वह एक ऐंटेना या रेडियो के समान है, जो समस्वरित होता है तो अचानक किसी ऐसे केंद्र से जुड़ जाता है, जहां की बातें मानस पटल पर आ जाती हैं। जब तरंग संयोजक क्षीण होता है तो उस केंद्र से संपर्क करना मुश्किल होता है। सोवियत संघ की सेना आधुनिक संचार माध्यमों का उपयोग किए बिना विचारों के संप्रेषण की संभावनाओं पर अनुसंधान कर चुकी है। नासा अंतरिक्ष अंतरिक्ष यात्रियों से विचारों के संप्रेषण के जरिए संबंध बनाने, यहां तक कि उनकी चिकित्सा फ्रीक्वेंसी के जरिए करने की संभावनाओं पर काम कर रहा है। इस काम में पांच सौ वैज्ञानिकों के दल में बिहार योग विद्यालय के निवृत्त परमाचार्य परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती भी शामिल हैं।

भारत के योग रिसर्च फाउंडेशन ने दुनिया के कई देशों के साथ मिलकर इस विषय पर अध्ययन किया। स्वामी निरंजनानंद सरस्वती ने अध्ययन के नतीजों की व्याख्या की है। उनके मुताबिक, पंचमहाभूतों में एक होता है आकाश तत्व। उसी में अग्नि तत्व व्याप्त होता है, जिसे तेज या ऊर्जा कहते हैं। आदमी जो भी कर्म या विचार करता है, उसका स्पंदन वायुमंडल के द्वारा आकाश तत्व में फैलता है। ठीक वैसे ही जैसे पानी में पत्थर फेंकने पर तरंगें उत्पन्न होती हैं। यदि कोई व्यक्ति या यंत्र उन स्पंदनों को पकड़ने में सक्षम है तो वह जान सकता है कि उन स्पंदनों के मूल में कौन से विचार हैं। इसे ही टेलीपैथी कहते हैं। पर उसी स्पंदन को चेतना के सूक्ष्म क्षेत्र में ग्रहण कर एक रूप दिया जाता है तो जो हो रहा है या अतीत में जो हुआ उसे अंतर्दृष्टि से स्पष्ट रूप से देखने की शक्ति मिल जाती है। जिस प्रकार एक तरंग का रूप परिवर्तित होने से हम दूर के दृश्यों और आवाज को टेलीविजन पर देख-सुन पाते हैं। उसी तरह योग की परंपरा में कुछ ऐसे उपाय हैं, जिनकी सहायता से तृतीय नेत्र को जागृत किया जा सकता है। इससे पदार्थ, नाम और रूप को देखने वाली दृष्टि अतीन्द्रिय दृष्टि में बदल जाती है। उन्हीं उपायों में एक है नाड़ी शोधन प्राणायाम।

दरअसल, शरीर की मुख्य तीन नाड़ियों इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना का मिलन आज्ञा चक्र में होता है। योगियों का मानना है कि पीनियल ग्रंथि का आज्ञा चक्र से निकट संबंध है। यह अंतर्ज्ञान के क्षेत्र है। इसलिए आज्ञा चक्र को जागृत करने के किसी भी उपाय से पीनियल ग्रंथि भी प्रभावित होता है। विज्ञान साबित कर चुका है कि आमतौर पर मस्तिष्क का दस फीसदी भाग ही सही तरीके से काम करता है। शेष भाग सुषुप्तावस्था में होता है। मस्तिष्क का क्रियाशील भाग तो इड़ा और पिंगला की शक्ति से काम करता है। पर शेष भागों में केवल पिंगला की ही शक्ति मिलती है। पिंगला जीवन है और इड़ा चेतना।

दूसरी तरफ, अनुसंधानों से पता चल चुका है कि लगभग आठ साल तक पीनियल ग्रंथि बिल्कुल स्वस्थ रहती है। उसके बाद दोनों भौहों के बीच यानी भ्रू-मध्य के ठीक पीछे मस्तिष्क में अवस्थित यह ग्रंथि कमजोर होने लगती है। बुद्धि और अंतर्दृष्टि के मूल स्थान वाली यह ग्रंथि किशोरावस्था में अक्सर विघटित हो जाती है। परिणामस्वरूप अनुकंपी (पिंगला) और परानुकंपी (इड़ा) नाड़ी संस्थान के बीच का संतुलन बिगड़ जाता है। नतीजतन, पिट्यूटरी ग्रंथि से हॉरमोन का रिसाव शुरू होकर शरीर के रक्तप्रवाह में मिलने लगता है। इससे बाल मन में उथल-पुथल मच जाता है। नतीजतन, प्रतिभा का समुचित विकास नहीं हो पता।

आज्ञा चक्र या पीनियल ग्रथि के लिहाज से नाड़ी शोधन प्राणायाम का अंत:स्रावी संस्थान पर आश्चर्यजनक प्रभाव पड़ता है। इड़ा और पिंगला नाड़ियां संतुलित हो जाती हैं और अन्य नाड़ियां भी शुद्ध हो जाती हैं। पीनियल ग्रंथि को स्वस्थ्य बनाए रखने में मदद मिलती है। इसलिए खासतौर से बच्चों को सात-आठ तक की उम्र से ही प्रतिभा के विकास के लिए सूर्य नमस्कार और गायत्री मंत्र के जप के साथ ही नाड़ी शोधन प्राणायाम करने की सलाह दी जाती है। वैसे ये क्रियाएं हर उम्र के व्यक्ति के लिए फलदायक हैं।

(लेखक ushakaal.com के संपादक और योग विज्ञान विश्लेषक हैं)

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